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    शैक्षणिक योजनाकार

    शैक्षणिक योजना विद्यालयी शिक्षा का एक अभिन्न अंग है। यह विद्यालय में गुणवत्तापूर्ण शिक्षण-अधिगम सुनिश्चित करता है। हमारे शैक्षणिक योजना में समय का सदुपयोग, लक्ष्य निर्धारित करना और उत्पादकता को अधिकतम करने और शैक्षणिक प्रमुखता प्राप्त करने के लिए कार्यों को प्राथमिकता देना शामिल है। केंद्रीय विद्यालय कलिम्पोंग में, हम आमतौर पर क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा भेजे गए शैक्षणिक कैलेंडर का पालन करते हैं। शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए हमारा शैक्षणिक कैलेंडर इस प्रकार है:

    1. शैक्षणिक समन्वय: NEP-2020 में विभिन्न चरणों, अर्थात, आधारभूत, प्रारंभिक, मध्य और माध्यमिक चरणों में शैक्षणिक प्रक्रियाओं में बदलाव की परिकल्पना की गई है, जिसे सभी केंद्रीय विद्यालयों में जारी रखने की आवश्यकता है। योग्यता-आधारित शिक्षा, आलोचनात्मक और रचनात्मक सोच, विषयों के एकीकरण, नवाचार और प्रयोग आदि पर यथोचित जोर दिए जाने की आवश्यकता है। प्रत्येक केंद्रीय विद्यालय द्वारा व्यक्तिगत शिक्षक/मुख्यध्यापक/ उपाध्यक्ष/प्राचार्य के स्तर पर उचित योजना बनाई जानी चाहिए।
    2. सीखने में कमी: पिछले दो शैक्षणिक सत्रों में पाठ्यक्रम के कार्यान्वयन की पहुँच और पद्धति की सीमाओं के कारण विद्यार्थियों में सीखने में कुछ कमी आई है। इस तत्काल चिंता को दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं –
      • कक्षावार सीखने में आनेवाले कमी की पहचान की जानी चाहिए।
      • पिछले सीखने की अवधारणाओं सहित ब्रिज कोर्स आयोजित किए जाने चाहिए, जिसमें कक्षा में अधिकांश/कई विद्यार्थियों में पाए जानेवाले सीखने की कमी को शामिल किया जाना चाहिए।
      • दूसरों के लिए विशिष्ट छोटे-समूह/व्यक्तिगत उपचारात्मक उपाय अपनाए जाने चाहिए
      • इन अभ्यासों को समय-समय पर जारी रखने की आवश्यकता है; जब तक कि कक्षा के सभी विद्यार्थियों में इन सभी अंतरालों को संबोधित नहीं किया जाता।
    3. बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता: NEP-2020 बच्चों के प्रारंभिक वर्षों में वृद्धि और विकास के महत्त्व पर ज़ोर देता है। तदनुसार, यह विद्यालय प्रणालियों को बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता पर ध्यान केंद्रित करके बच्चों की प्रारंभिक सीखने की क्षमताओं का लाभ उठाने के लिए प्रेरित करता है। इस संबंध में दो ध्यान देने योग्य क्षेत्र हैं:
      • निपुण भारत मिशन –मिशन दस्तावेज़ में शिक्षण और निगरानी के क्षेत्रों पर दिए गए दिशानिर्देशों का सावधानीपूर्वक पालन किया जाना चाहिए।
      • सभी कक्षाओं में लक्ष्य/परिणाम प्राप्त करने में शिक्षार्थियों की सहायता करने के लिए सक्षम वातावरण का निर्माण और रखरखाव किया जाएगा।
      • सभी विद्यालयों में निपुण भारत लोगो और संबंधित कक्षा के लक्ष्य प्रदर्शित किए जाने चाहिए;
      • कक्षाओं में मुद्रण समृद्ध और अंक ज्ञान समृद्ध वातावरण उपलब्ध कराया जाएगा;
      • कक्षा पुस्तकालयों में आयु एवं विकास के अनुरूप बाल साहित्य उपलब्ध कराया जाएगा;
      • विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए सीआईईटी वैबसाइट पर उपलब्ध ऑडियो बुक जैसे डेजी को विद्यार्थियों के उपयोग के लिए स्कूल के कंप्यूटरों में डाउनलोड किया जा सकता है।
      • कक्षाओं में बच्चों के काम को प्रदर्शित करने की व्यवस्था करना; तथा
      • विद्यार्थियों को कक्षा में या विद्यालय के अन्य क्षेत्रों में गतिविधियाँ करने और अपनी रुचियों को आगे बढ़ाने के लिए स्थान उपलब्ध कराएँ ताकि बच्चे अपनी पसंद की गतिविधियाँ कर सकें।
      • प्रवेश स्तर पर योग्यताओं का मूल्यांकन तथा वर्ष के अंत में लक्ष्यों की प्राप्ति का अध्ययन किया जाना चाहिए, ताकि क्षमताओं की पहचान की जा सके तथा पाठ्यचर्या संचालन के संदर्भ में सुधार की आवश्यकता वाले क्षेत्रों का पता लगाया जा सके।
      • कक्षा 1 के विद्यार्थियों के लिए पिछले वर्ष शुरू किया गया योग्यता मूल्यांकन इस वर्ष भी जारी रहेगा।
      • इस वर्ष इसे कक्षा 2 के विद्यार्थियों तक विस्तारित किया जाएगा तथा दक्षता के स्तर के लिए रूब्रिक्स अलग से प्रसारित किए जाएँगे।
      • सीएमपी बैठक के स्थान पर मासिक निपुण बैठकें आयोजित की जाएँगी।
      • केवीएस-निपुण भारत ब्लॉग https://kvs-fln5.blogspot.com पर उपलब्ध है, जिसका सभी हितधारकों द्वारा प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाएगा।
      • विद्या प्रवेश – इस तीन महीने के खेल-आधारित विद्यालय तैयारी मॉड्यूल को कक्षा 1 के विद्यार्थियों के लिए लागू किया जाना चाहिए। यदि आवश्यक हो, तो इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए विद्यालय/क्लस्टर स्तर पर कार्यशालाएँ आयोजित की जानी चाहिए। https://ncert.nic.in/pdf/VidyaPravesh.
      • एनसीईआरटी द्वारा विकसित बरखा सीरीज जैसे संसाधन विद्यार्थियों की पढ़ने की क्षमता को समृद्ध करने के लिए विद्यार्थियों में उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
    4. दक्षता आधारित मूल्यांकन: एनईपी-2020 वैचारिक समझ, रचनात्मकता और आलोचनात्मक सोच पर ज़ोर देता है ताकि उभरते ज्ञान परिदृश्य द्वारा उत्पन्न चुनौतियों को उत्पादक अवसरों में बदला जा सके। तदनुसार, नीति कक्षा के व्यवहार में योग्यता आधारित सीखने और शिक्षा की ओर बदलाव की वकालत करती है। इस तरह की योग्यता आधारित शिक्षा का एक अभिन्न अंग योग्यता आधारित मूल्यांकन है। स्कूल स्तर पर सभी आवधिक परीक्षणों और परीक्षाओं में, योग्यता आधारित प्रश्न शामिल किए जाएँगे: –
      • कक्षा IX से XII के लिए सीबीएसई मानदंडों के अनुसार; और
      • कक्षा III से VIII के लिए प्रश्न पत्र का कम से कम 30%।
    5. क्षेत्रीय भाषा/मातृभाषा का शिक्षण: क्षेत्रीय भाषा/मातृभाषा का शिक्षण एक अतिरिक्त व्यवस्था के रूप में प्रदान किया जाता है और इसे आगे भी जारी रखा जा सकता है। हालाँकि, प्राथमिक कक्षाओं के उन बच्चों के लिए, जिन्हें अंग्रेज़ी और हिंदी शिक्षण में कठिनाई हो रही है, उनकी मातृभाषा जाननेवाले शिक्षक उन्हें तब तक मार्गदर्शन दे सकते हैं जब तक कि वे शिक्षण माध्यम से सहज नहीं हो जाते।
    6. पर्यावरण शिक्षा और संधारणीय प्रथाओं को अपनाना: पर्यावरण के बारे में जागरूकता पैदा करने और उन्हें यह समझने और सराहना करने में मदद करने के लिए कि उनके कार्य पर्यावरण को कैसे प्रभावित करते हैं, विद्यार्थियों को विभिन्न व्यावहारिक गतिविधियों में शामिल करना महत्वपूर्ण है। ऐसी गतिविधियों से पहले और बाद में कक्षा में सार्थक चर्चा की जानी चाहिए। सभी केंद्रीय विद्यालय इस संबंध में निम्नलिखित कार्य कर सकते हैं:
      • इको क्लब स्थापित करें और विद्यार्थियों को पड़ोस में उपलब्ध प्रतिष्ठित संस्थानों और विशेषज्ञों से परिचित कराने की संभावनाओं का पता लगाएँ;
      • बागवानी, वृक्षारोपण, प्रकृति की सैर, पक्षी देखना आदि जैसी गतिविधियाँ शुरू करें और इन्हें विद्यालय योजना का हिस्सा बनाएंँ; और
      • अपशिष्ट पुनर्चक्रण, जल और ऊर्जा संरक्षण आदि जैसी विभिन्न स्थायी प्रथाओं का परिचय दें।
    7. प्री-वोकेशनल एजुकेशन प्रोग्राम (PVEP): NEP-2020 मिडिल स्टेज (कक्षा VI से VIII) में प्री-वोकेशनल एजुकेशन प्रोग्राम के महत्त्व पर प्रकाश डालता है, जो विद्यार्थियों को उच्च कक्षाओं में अपने विषयों का चयन करते समय सूचित विकल्प बनाने में सक्षम बनाएगा क्योंकि इससे उन्हें काम की दुनिया में उपलब्ध विभिन्न व्यवसायों के बारे में जानकारी मिलेगी। विद्यालयों की शैक्षणिक योजना में शामिल करने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए:
      • कक्षा 6-8 के दौरान प्रत्येक छात्र एक मनोरंजक पाठ्यक्रम लेगा, जिसमें महत्वपूर्ण व्यावसायिक शिल्पों के नमूने का व्यावहारिक अनुभव दिया जाएगा, जैसे बढ़ईगीरी, बिजली का काम, धातु का काम, बागवानी, मिट्टी के बर्तन बनाना आदि, जैसा कि राज्यों और स्थानीय समुदायों द्वारा तय किया जाएगा और स्थानीय कौशल आवश्यकताओं के अनुसार निर्धारित किया जाएगा।
      • इस संबंध में केवीएस की शिक्षा संहिता के अनुच्छेद 132 में पहले से ही प्रावधान मौजूद है और समय-समय पर जारी आदेशों/निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए।
      • केवीएस और क्षेत्रीय कार्यालय ने विद्यार्थियों/अभिभावकों की पसंद/स्थानीय जरूरतों के आधार पर प्रशिक्षकों के साथ-साथ पाठ्यक्रमों/कौशल की पहचान करने का काम पहले ही कर लिया है।
      • इसके अलावा, सीबीएसई द्वारा मिडिल क्लास (कक्षा VI, VII, VIII) में कौशल मॉड्यूल की पेशकश की जा रही है और बोर्ड इन कक्षाओं में कौशल मॉड्यूल की पेशकश के लिए स्कूल से कोई शुल्क नहीं लेता है। विवरण सीबीएसई की वैबसाइट (शैक्षणिक वैबसाइट- कौशल शिक्षा) पर cbseacademic.nic.in/skill-education.html पर उपलब्ध हैं।
      • बैग-लेस दिनों के लिए विद्यार्थियों के लिए दिलचस्प गतिविधियों की योजना बनाई जानी चाहिए।
    8. संसाधनों का उपयोग:
      अब जबकि विद्यालयों का नियमित कामकाज आमने-सामने की शारीरिक स्थिति में शुरू हो गया है, भौतिक और डिजिटल दोनों संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाना चाहिए।

      • प्रयोगशालाओं, पुस्तकालय और खेल-कूद की सुविधाओं सहित भौतिक बुनियादी ढांँचे की सुरक्षा और स्वच्छता के लिए जांँच की जानी चाहिए।
      • विद्यार्थियों की ऑनलाइन सहभागिता के दौरान शिक्षकों द्वारा विकसित कौशल और केंद्रीय विद्यालय में उपलब्ध डिजिटल संसाधनों को विद्यार्थियों की शिक्षा को पूरक और बढ़ाने के लिए जारी रखने की आवश्यकता है।
    9. सीसीए: सह-पाठ्यचर्या संबंधी गतिविधियाँ केंद्रीय विद्यालय में लेन-देन का एक अनिवार्य हिस्सा रही हैं। इस संबंध में नए सिरे से ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि अब स्कूल सामान्य रूप से भौतिक रूप से काम करना शुरू कर चुके हैं। इन गतिविधियों में बड़ी संख्या में विद्यार्थियों की भागीदारी के अवसर प्रदान करने के लिए विस्तृत योजना और कार्यान्वयन की आवश्यकता है। ऐसी गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए जो रचनात्मकता को बढ़ावा देती हैं, संचार कौशल और नेतृत्व गुणों को बढ़ाती हैं।
    10. विद्यार्थियों का समग्र कल्याण: विद्यार्थियों को बीते हुए समय में आमने-सामने बातचीत के लिए सीमित अवसर ही मिलते थे। सीमित समय के उस परिदृश्य में विद्यार्थियों की भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को पूरा करने के प्रयास किए गए। विद्यार्थियों की भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को संबोधित करने के ऐसे प्रयासों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि बच्चों के स्वस्थ विकास को सुनश्चित किया जा सके।